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कह दो पुकार कर सुन ले दुनिया सारी ,हम हिन्द तनय है हिन्दी मातु हमारी..

Sunday, November 11, 2007

फिर हुई वाह वाह खूब खूब

  • मशहुर गीत एवम गजलकार कुंवर बैचैन जी ,अमेरिका से पधारे राकेश खन्डेलवाल जी कनाडा से भाइ समीरलाल जी दिल्ली स्थित सुनिता चोटिआ जी के घर उपस्थित अन्य 50 से भी अधिक चिठठाकार भाइयो के साथ अमेरिका से अनूप भाइ , शारजाह से पूर्णिमा जी , युग़ांडा से भावना कुंवर जी ,न्युज़ीलैड से रोहित हैप्पी जी , इग्लैड से ललित जी सहित 25 से अधीक लोगो ने आनलाइन इस कार्यक्रम का आनन्द लिया तथा वैब्कैम पर सीधा प्रसारण भी देखा
    " हिन्दी भाषियो ,कवियो,रचनाकारो , चिठ्ठाकारो का एक आभाषी ही परंतु एक बहुत प्यारा समूह नैट पर तैयार हो रहा है जहा पर प्रेम है,रिश्ते है,भावनाए है यह इ सम्मेलन इस दुनिया को थोडा और वास्तविक बनाने की कोशिश मात्र् है "
    कल के कार्यक्रम का प्रसारण स्काइप से करने की भी व्यवस्था की गइ थी परंतु एन मौके पर स्काइप द्वारा सरवर मैंटैनैंस कार्य होने से स्काइप पर प्रसारण सम्भव नही हुआ वरना और अधीक आनन्द आता परंतु याहू मैसेंजर से ज़ुड कर 20 से भी अधीक लोगो ने इस कार्यक्रम का आनन्द लिया गया शीघ्र ही इस कार्यक्रम की वीडियो ,तथा आडियो क्लिप्स इस ब्लाग पर पोस्ट कर दी जाएगी जिससे बाकी लोग जो इस मे भाग लेने से किसी तकनीक वजह से या जानकारी न मिल पाने से सम्मिलित नही हो सके इस का मजा उठा सके
    आगामी कार्यक्रमो के लिये पहले से रजिस्टर हो ले : और हा भविष्य मे यदि आप भी इस तरह के प्रसारणो का हिस्सा बनना चाहते है तो अपना इमेल esammelan@gmail.com पर रजिस्टर करा ले (यह इ मेल पूर्णत: स्पैम फ्री है हमे आपकी प्राइवेसी का पूरा सम्मान है )
    क्या है इ सम्मेलन : इ प्रसारण (वैबकास्टिंग) आडियो तथा वीडियो कास्टिंग् का ही एक रूप है जिसमे हम नैट पर उपलब्ध फ्री टूल्स स्काइपी,याहू,तथा पालटाल्क का उपयोग लेते है तथा वीडीयो हेतु वैब कैम का प्रयोग करते है .परंतु पूर्वानुभव न होने की वजह से कइ लोगो को इस के उपयोग मे परेशानी होना स्वाभाविक है इस समस्या को ध्यान मे रख कर यथा शीघ्र वीडियो टयुटोरिअल्स ब्लाग पर उपलब्ध किये जाएगे तथा कोशिश की जाएगी की समय समय पर आपको आनलाइन देश विदेश मे स्थित हिन्दी कवियो ,साहित्यकारो की रचनाओ का आनन्द मिल सके तथा आप भी उनसे प्रत्यक्ष सम्वाद कर सके .

    सुझाव तथा प्रतिक्रियाए अवश्य दे

    शुभकामनाऑ सहित

1 comment:

Unknown said...

कविता के सागर से निकली संवेदनाओं की खुश्बू मुझ तक पहुंची। बधाई। छोटी-छोटी कोशिशें कितना बड़ा काम कर जाती हैं, इतिहास हमें इनके उदाहरण देता है। यह आयोजन भी आने वाले दिनों में उसी इतिहास का हिस्सा होगा। कविता में बदलाव के सारे बड़े संदभॆ ऐसे ही छोटी-छोटी पगडंडियों से गुजरते हैं। समय सारी कोशिशो को अपने रजिस्टर में लिखता रहता है। ऐसे दौर में जब महानगरों में अतिथि के सत्कार से पहले उससे होने वाले ळाभ गिनने की रवायत चल रही हो, इस तरह के आयोजन को धारा के विपरीत एक जरूरी कोशिश के तौर पर दजॆ किया जाना चाहिए। हिंदी भाषा और हिंदी भाषी समाज दोनों पर अपने समय से पीछे चलने का आरोप है। तकनीकी से परहेज और कूप-मंडूक होने के तकॆ अक्सर दिए जाते हैं। लेकिन कमाल है साहब, हिंदी और तकनीकी के संगम ने होशंगाबाद, अमेरिका और दिल्ली सबको एक जगह जुटा दिया। मैं आप सब के लिए सिफॆ एक लफ्ज लिखना चाहूंगा-जिंदाबाद।।।।
-प्रताप सोमवंशी
स्थानीय संपादक, अमर उजाला हिंदी दैनिक, ८९ इंडस्टियल एस्टेट कानपुर